
Bihar Domicile Niti 2025
बिहार डोमिसाइल नीति: बिहार की राजनीति और प्रशासनिक फैसलों में इन दिनों एक शब्द बार-बार सुनाई दे रहा है – डोमिसाइल नीति। शिक्षक भर्ती प्रक्रिया (TRE-4) से जुड़े इस फैसले ने न केवल राज्य के युवाओं को उम्मीद की किरण दी है, बल्कि सरकार की मंशा और सोच को भी उजागर किया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 4 अगस्त 2025 को की गई इस घोषणा के बाद, बिहार में स्थायी निवासियों को शिक्षक भर्ती में प्राथमिकता मिलने जा रही है। इस नीति के पीछे का उद्देश्य, इसके विरोध, समर्थन और सामाजिक असर को समझना बेहद ज़रूरी है।
बिहार डोमिसाइल नीति 2025 क्या है?
डोमिसाइल (Domicile) का मतलब होता है – स्थायी निवास प्रमाण पत्र। यह प्रमाण पत्र यह सिद्ध करता है कि कोई व्यक्ति किसी राज्य का स्थायी निवासी है।
जब कोई राज्य अपनी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों या योजनाओं में अपने डोमिसाइल धारकों को प्राथमिकता देता है, तो इसे डोमिसाइल नीति कहा जाता है।
बिहार डोमिसाइल नीति का इतिहास
बिहार में शिक्षक बहाली की प्रक्रिया (TRE-1 से TRE-3) के दौरान यह देखा गया कि अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों को भी आवेदन और चयन का अवसर मिला। वर्ष 2023 में बिहार सरकार ने डोमिसाइल की अनिवार्यता को हटा दिया था। इसका असर यह हुआ कि कुछ सीटों पर बिहार से बाहर के उम्मीदवारों का चयन हुआ — हालांकि प्रतिशत बहुत कम रहा (~2%)। फिर भी इस पर काफी विवाद और छात्र संगठनों द्वारा विरोध हुआ।
2025 की नई घोषणा: TRE-4 में बिहारवासियों को वरीयता
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अब यह ऐलान किया है कि TRE-4 से बिहार के अभ्यर्थियों को प्राथमिकता दी जाएगी। इसका मतलब है कि बिहार के स्थायी निवासी ही शिक्षक पदों के लिए पहले योग्य माने जाएंगे। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 35% महिला आरक्षण का लाभ भी केवल बिहार की महिलाओं को ही मिलेगा। बाहरी राज्यों की महिलाएं अब केवल सामान्य श्रेणी में ही आवेदन कर सकेंगी।
क्यों लिया गया यह फैसला?
सरकार के अनुसार, इस फैसले के पीछे कुछ महत्वपूर्ण वजहें हैं:
स्थानीय युवाओं को अवसर देना: बिहार में योग्य बेरोजगार युवाओं की संख्या बहुत अधिक है। ऐसे में अन्य राज्यों के उम्मीदवारों को अवसर देना राज्य के युवाओं के साथ अन्याय जैसा था।
राज्य की सामाजिक संरचना को बनाए रखना: स्थानीय शिक्षक स्थानीय संस्कृति, भाषा और बच्चों की जरूरतों को बेहतर समझते हैं। बाहर से आए शिक्षक ग्रामीण स्कूलों में प्रभावी नहीं हो पाते।
राजनीतिक दबाव और जनभावना: पिछले एक साल में छात्रों और संगठनों ने डोमिसाइल नीति की वापसी के लिए कई बार धरना-प्रदर्शन किया था। सरकार को यह महसूस हुआ कि यह जनता की भावना का विषय बन गया है।
छात्र संगठनों का आंदोलन और प्रतिक्रिया
1 अगस्त 2025 को पटना में बिहार स्टूडेंट्स यूनियन सहित कई छात्र संगठनों ने 100% डोमिसाइल कोटा की मांग को लेकर बड़ा प्रदर्शन किया। छात्रों ने नारे लगाए — “बिहारी का हक़ बिहारी को दो”, “अपने घर की नौकरी अपने लोगों को दो”।
छात्रों की यह मांग थी कि सिर्फ शिक्षक ही नहीं, बल्कि सभी सरकारी नौकरियों में बिहारवासियों को 90-100% तक आरक्षण मिलना चाहिए।
महिला आरक्षण में बदलाव
अब तक 35% महिला आरक्षण सभी महिला उम्मीदवारों के लिए था – चाहे वे बिहार की हों या अन्य राज्यों की। लेकिन नए नियम के अनुसार:
बिहार की महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिलेगा।
बाहरी राज्यों की महिलाएं अब General (सामान्य) श्रेणी में आएंगी।
यह फैसला बिहार की बेटियों को नौकरियों में सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
क्या यह संविधान के खिलाफ है?
कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या डोमिसाइल नीति संविधान की धारा 14 (समानता का अधिकार) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता) का उल्लंघन है?
सरकार का जवाब है कि संविधान राज्य को यह अधिकार देता है कि वह स्थानीय ज़रूरतों के अनुसार नियम बनाए। अन्य कई राज्यों में भी ऐसी नीतियाँ लागू हैं – जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, और झारखंड में।
अन्य राज्यों में भी लागू है डोमिसाइल नीति
राज्य | डोमिसाइल नीति |
---|---|
महाराष्ट्र | 70% तक स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता |
तेलंगाना | 95% तक लोकल कोटा सरकारी नौकरियों में |
गुजरात | शिक्षक भर्ती में स्थानीय भाषा और निवास को वरीयता |
झारखंड | 75% स्थानीय आरक्षण प्रस्तावित |
बिहार ने इसी मॉडल को अपनाते हुए अपने युवाओं को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।
सामाजिक और राजनीतिक असर
लाभ:
बिहार के बेरोजगार युवाओं को सीधा फायदा।
ग्रामीण स्कूलों में स्थानीय शिक्षकों की नियुक्ति से बच्चों की पढ़ाई में सुधार।
महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में कदम।
चुनौतियाँ:
बाहरी अभ्यर्थियों के लिए यह अवसर सीमित हो जाएगा।
कोर्ट में इसे चुनौती दी जा सकती है।
भविष्य में राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बना सकते हैं।
निष्कर्ष:
बिहार सरकार की डोमिसाइल नीति न केवल प्रशासनिक निर्णय है, बल्कि यह राज्य की युवा शक्ति और भविष्य निर्माण की दिशा में एक ठोस कदम है। स्थानीय युवाओं को अपने ही राज्य में नौकरी का अवसर देना, उन्हें सम्मान देना और उनकी प्रतिभा पर भरोसा करना — यह इस नीति का मूल उद्देश्य है। भले ही यह फैसला कुछ विरोधों और चर्चाओं के बीच में आया हो, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि “अपने घर की नौकरी, अपने घर के लोगों को” – यही अब बिहार का नारा बनता जा रहा है।
सुझाव:
बिहार के युवाओं को अब चाहिए कि वे इस अवसर का भरपूर लाभ उठाएं। शिक्षक भर्ती जैसे पदों के लिए पूरी तैयारी करें, क्योंकि अब मैदान उनके लिए साफ हो चुका है। मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से ही वे अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।
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